Shayari | देव | 1-10

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6. धर्म के नाम पर मोहब्बत तोड़ने वालो को रोके कोई

डर के छोड़ गई जो मोहब्बत उसकी याद में बहते अश्कों को रोके कोई,

 

तन्हायी में इस जाम की यारी एहसास दिलाती है

कभी आ के हमे भी पीने से रोके कोई…

-देव

5. किसने सोचा था की ये दिन देखना पड़ेगा

बिछड़ कर उनसे ज़िंदगी का हर दर्द अकेले सहना पड़ेगा,

 

बहुत तड़पे उन के तसव्वुर को मगर उन्हें दया ना आयी

लगता है अब ज़िंदगी के पार ख़्वाबो में मिलना पड़ेगा…

-देव

4. बस एक शराब की बोतल दबोच रखी है

तुम्हारी यादों से निपटने की तरकीब सोच रखी है,

 

मेरे हाथ में ये बोतल देख

इस देव को दास बना देख

मेरी दुनिया मुझसे बहुत लड़ती है,

 

पर क्या करूँ

बहुत शराब चढ़ाता हूँ 

तब कही जा कर वो यादें उतरती है…

-देव

3. अब नहीं होगी मोहोब्बत किसी से

चार दिन की ज़िंदगी में किस किस को आज़माते फिरेंगे,

 

गिरे हैं एक बार मोहब्बत कर के किसी से,

अब तो बस ख्वाहिशें पूरी कर के मरेंगे…

 

-देव

 

2. माना के हमने प्यार में करी हद पार

मगर इरादे ग़लत बेकार ना थे,

 

सपने तो अपने टूटे बिखरे हज़ार

मगर हम अकेले गुनहगार ना थे,

 

आप तो चल दिये बीते लम्हों को ठुकरा कर

फिर मिले एक दफ़ा राह में तो नज़रे फेरी इस कदर,

 

जैसे हम आज के परदेसी 

कभी यार ना थे…


-देव

1. दिन के उजाले में बोझ बने कामों को ढो लेता हूँ 

रात के अंधेरे में यादों के पौधे को अशकों से सींच लेता हूँ, 

बस ईसी तरह

थोड़ा जी लेता हूँ थोड़ा मर लेता हूँ…

-देव

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